अश्क से मेरे बचे हम-साया क्यूँ-कर घर समेत By Sher << ज़ख़्म ये वस्ल के मरहम से... टकराऊँ क्यूँ ज़माने से क्... >> अश्क से मेरे बचे हम-साया क्यूँ-कर घर समेत बह गई हैं कश्तियाँ इस बहर में लंगर समेत Share on: