ज़मानों को उड़ानें बर्क़ को रफ़्तार देता था By Sher << उस को न ख़याल आए तो हम मु... हो गया हूँ मैं नक़ाब-ए-रू... >> ज़मानों को उड़ानें बर्क़ को रफ़्तार देता था मगर मुझ से कहा ठहरे हुए शाम-ओ-सहर ले जा Share on: