ज़मीं के और तक़ाज़े फ़लक कुछ और कहे By Sher << बहार आए तो मेरा सलाम कह द... फैलते हुए शहरो अपनी वहशते... >> ज़मीं के और तक़ाज़े फ़लक कुछ और कहे क़लम भी चुप है कि अब मोड़ ले कहानी क्या Share on: