फैलते हुए शहरो अपनी वहशतें रोको By Sher << ज़मीं के और तक़ाज़े फ़लक ... दर्द-ए-सर में है किसे संद... >> फैलते हुए शहरो अपनी वहशतें रोको मेरे घर के आँगन पर आसमान रहने दो Share on: