ज़ुलेख़ा के वक़ार-ए-इश्क़ को सहरा से क्या निस्बत By Sher << थी नींद मेरी मगर उस में ख... मैं बोलता गया हूँ वो सुनत... >> ज़ुलेख़ा के वक़ार-ए-इश्क़ को सहरा से क्या निस्बत जो ख़ुद खींच कर न आ जाए उसे मंज़िल नहीं कहते Share on: