फिर हुआ ऐसे कि मुझ को दर-ब-दर करने के बा'द By Sher << इसी क़दर है हयात ओ अजल के... आश्ना कोई नज़र आता नहीं य... >> फिर हुआ ऐसे कि मुझ को दर-ब-दर करने के बा'द नाम उस बस्ती का मेरे नाम पर रक्खा गया Share on: