जी चाहता है साने-ए-क़ुदरत पे हूँ निसार By Sher << कहीं इंतिहा की मलामतें कह... मस्लहत का यही तक़ाज़ा है >> जी चाहता है साने-ए-क़ुदरत पे हूँ निसार बुत को बिठा के सामने याद-ए-ख़ुदा करूँ Share on: