जिस खेत से दहक़ाँ को मयस्सर नहीं रोज़ी By Sher << ज़ाहिद पियाला थाम झिझकता ... हम भी 'मुनीर' अब ... >> जिस खेत से दहक़ाँ को मयस्सर नहीं रोज़ी उस खेत के हर ख़ोशा-ए-गंदुम को जला दो Share on: