हम भी 'मुनीर' अब दुनिया-दारी कर के वक़्त गुज़ारेंगे By Sher << जिस खेत से दहक़ाँ को मयस्... किस दर्जा दिल-शिकन थे मोह... >> हम भी 'मुनीर' अब दुनिया-दारी कर के वक़्त गुज़ारेंगे होते होते जीने के भी लाख बहाने आ जाते हैं Share on: