जिस में न कोई रंग न आहंग न ख़ुशबू By Sher << अब नज़अ का आलम है मुझ पर ... मिट जाने के आसार विरासत म... >> जिस में न कोई रंग न आहंग न ख़ुशबू तुम ऐसे गुलिस्ताँ को जला क्यूँ नहीं देते Share on: