जिसे इशरत-कदा-ए-दहर समझता था मैं By Sher << बड़े सीधे-साधे बड़े भोले-... गो हरम के रास्ते से वो पह... >> जिसे इशरत-कदा-ए-दहर समझता था मैं आख़िर-ए-कार वो इक ख़्वाब-ए-परेशाँ निकला Share on: