जिस्म का कूज़ा है अपना और न ये दरिया-ए-जाँ By Sher << जो इश्क़ चाहता है वो होना... जंगलों को काट कर कैसा ग़ज... >> जिस्म का कूज़ा है अपना और न ये दरिया-ए-जाँ जो लगा लेगा लबों से उस में भर जाएँगे हम Share on: