जिस्म को पढ़ते रहे वो रूह तक आए नहीं By Sher << जाँ-कनी पेशा हो जिस का वो... बारहा हम पे क़यामत गुज़री >> जिस्म को पढ़ते रहे वो रूह तक आए नहीं 'जौन' को पढ़ते रहे 'मजरूह' तक आए नहीं Share on: