जिस्म में ख़्वाहिश न थी एहसास में काँटा न था By Sher << बादल आए हैं घिर गुलाल के ... मोहब्बत ज़ुल्फ़ का आसेब ज... >> जिस्म में ख़्वाहिश न थी एहसास में काँटा न था इस तरह जागा कि जैसे रात-भर सोया न था Share on: