जिस्म थकता नहीं चलने से कि वहशत का सफ़र By Sher << कभी भुलाया कभी याद कर लिय... हर्फ़ अपने ही मआनी की तरह... >> जिस्म थकता नहीं चलने से कि वहशत का सफ़र ख़्वाब में नक़्ल-ए-मकानी की तरह होता है Share on: