जीते-जी क़द्र बशर की नहीं होती साहब By Sher << इतनी न बढ़ा पाकी-ए-दामाँ ... पहले ये शुक्र कि हम हद्द-... >> जीते-जी क़द्र बशर की नहीं होती साहब याद आएगी तुम्हें मेरी वफ़ा मेरे बा'द Share on: