जो दिन है ख़ाक-ए-बयाबाँ जो रात है जंगल By Sher << हम आदमी की तरह जी रहे हैं... ज़ख़्म खा कर भी जो दुआएँ ... >> जो दिन है ख़ाक-ए-बयाबाँ जो रात है जंगल वो बे-पनाह मिरे घर से है ज़ियादा क्या Share on: