जो मेरे दश्त-ए-जुनूँ में था फ़र्क़-ए-रू-ए-बहार By Sher << जुरअत कहाँ कि अपना पता तक... जो भी कहना है कहो साफ़ शि... >> जो मेरे दश्त-ए-जुनूँ में था फ़र्क़-ए-रू-ए-बहार वही ख़िरद के ख़राबे में इक गुलाब बना Share on: