जो फिरी तो तेग़-ए-क़ज़ा बनी जो मिली तो आब-ए-बक़ा मिली By Sher << धुएँ की रेल चली मंज़रों म... ये जो हम लोग हैं एहसास मे... >> जो फिरी तो तेग़-ए-क़ज़ा बनी जो मिली तो आब-ए-बक़ा मिली ये अजब तरह का कमाल है तिरी चश्म-ए-इश्वा-तराज़ में Share on: