कई बारी बिना हो जिस की फिर कहते हैं टूटेगा By Sher << तिश्नगी ही तिश्नगी है किस... वो चार चाँद फ़लक को लगा च... >> कई बारी बिना हो जिस की फिर कहते हैं टूटेगा ये हुर्मत जिस की हो ऐ शैख़ क्या तेरा वो मक्का है Share on: