कई चाँद थे सर-ए-आसमाँ कि चमक चमक के पलट गए By चाँद, ज़ुल्फ़, Sher << जिस दिल-रुबा से हम ने आँख... जाती नहीं है सई रह-ए-आशिक... >> कई चाँद थे सर-ए-आसमाँ कि चमक चमक के पलट गए न लहू मिरे ही जिगर में था न तुम्हारी ज़ुल्फ़ सियाह थी Share on: