कई फ़रहाद हैं जूया तिरे शीरीं लब के By Sher << पहले शराब ज़ीस्त थी अब ज़... मतलूब है क्या अब यही कहते... >> कई फ़रहाद हैं जूया तिरे शीरीं लब के कई यूसुफ़ हैं ज़नख़दान के चाहों के बीच Share on: