मतलूब है क्या अब यही कहते नहीं बनती By Sher << कई फ़रहाद हैं जूया तिरे श... सब से पुर-अम्न वाक़िआ ये ... >> मतलूब है क्या अब यही कहते नहीं बनती दामन तो बड़े शौक़ से फैलाया हुआ था Share on: