काबा-ए-रुख़ की तरफ़ पढ़नी है आँखों से नमाज़ By Sher << कुछ कुछ मिरी आँखों का तसर... तमाम यादें महक रही हैं हर... >> काबा-ए-रुख़ की तरफ़ पढ़नी है आँखों से नमाज़ चाहिए गर्द-ए-नज़र बहर-ए-तयम्मुम मुझ को Share on: