कभी फ़ासलों की मसाफ़तों पे उबूर हो तो ये कह सुकूँ By Sher << आज फिर बुझ गए जल जल के उम... कभी कभी कितना नुक़सान उठा... >> कभी फ़ासलों की मसाफ़तों पे उबूर हो तो ये कह सुकूँ मिरा जुर्म हसरत-ए-क़ुर्ब है तो यही कमी यहाँ सब में है Share on: