क़दम क़दम पे दोनों जुर्म-ए-इश्क़ में शरीक हैं By Sher << इश्क़ में मौत का नाम है ज... हूरों की तलब और मय ओ साग़... >> क़दम क़दम पे दोनों जुर्म-ए-इश्क़ में शरीक हैं नज़र को बे-ख़ता कहूँ कि दिल को बे-ख़ता कहूँ Share on: