कहने सुनने के लिए और बचा ही क्या है By Sher << कहो हवा से कि इतनी चराग़-... जस्त भरता हुआ फ़र्दा के द... >> कहने सुनने के लिए और बचा ही क्या है सो मिरे दोस्त इजाज़त मुझे रुख़्सत किया जाए Share on: