काहीदा मुझ को देख के वो ग़ैरत-ए-परी By Sher << ख़ाक में मिल जाए वो चश्मा... कहें अदू न कहें मुझ को दे... >> काहीदा मुझ को देख के वो ग़ैरत-ए-परी कहता है आदमी हो कि मर्दुम-गयाह हो Share on: