क़ाएम है आबरू तो ग़नीमत यही समझ By Sher << संगत दिलों की जीवनों मरणो... पुस्तकों में प्रानों में ... >> क़ाएम है आबरू तो ग़नीमत यही समझ मैले से हैं जो कपड़े फटा सा जो बूट है Share on: