क़ामत ही लिखा हम ने सदा जा-ए-क़यामत By Sher << ये जिस्म तंग है सीने में ... ज़िक्र सुनती हूँ उजाले का... >> क़ामत ही लिखा हम ने सदा जा-ए-क़यामत क़ामत ने भुलाया तिरे इम्ला-ए-क़यामत Share on: