कटा न कोह-ए-अलम हम से कोहकन की तरह By Sher << हम आगही को रोते हैं और आग... हर तरफ़ दोस्ती का मेला है >> कटा न कोह-ए-अलम हम से कोहकन की तरह बदल सका न ज़माना तिरे चलन की तरह Share on: