ख़ामोश खड़ा हूँ मैं दर-ए-ख़्वाब से बाहर By Sher << तमाम उम्र रहे मेरा मुंतज़... शम-ए-शब-ताब एक रात जली >> ख़ामोश खड़ा हूँ मैं दर-ए-ख़्वाब से बाहर क्या जानिए कब तक इसी हालत में रहूँगा Share on: