ख़ाक में मिलना था आख़िर बे-निशाँ होना ही था By Sher << इश्क़ में क़द्र-ए-ख़स्तगी... दुश्मनी पेड़ पर नहीं उगती >> ख़ाक में मिलना था आख़िर बे-निशाँ होना ही था जलने वाले के मुक़द्दर में धुआँ होना ही था Share on: