ख़ाक थी और जिस्म ओ जाँ कहते रहे By Sher << इक कर्ब का मौसम है जो दाइ... मिरे लिए न रुक सके तो क्य... >> ख़ाक थी और जिस्म ओ जाँ कहते रहे चंद ईंटों को मकाँ कहते रहे it is dust that you for a body espouse it is few bricks and you call it a house Share on: