हमारे ब'अद उस मर्ग-ए-जवाँ को कौन समझेगा By Sher << बाग़बाँ कलियाँ हों हल्के ... क़ब्र में राहत से सोए थे ... >> हमारे ब'अद उस मर्ग-ए-जवाँ को कौन समझेगा इरादा है कि अपना मर्सिया भी आप ही लिख लें Share on: