ख़रीदारी है शहद ओ शीर ओ क़स्र ओ हूर ओ ग़िल्माँ की By Sher << कोई तस्वीर मुकम्मल नहीं ह... गुलाब टहनी से टूटा ज़मीन ... >> ख़रीदारी है शहद ओ शीर ओ क़स्र ओ हूर ओ ग़िल्माँ की ग़म-ए-दीं भी अगर समझो तो इक धंदा है दुनिया का Share on: