ख़ुद अपनी फ़िक्र उगाती है वहम के काँटे By Sher << अगरचे रोज़ मिरा सब्र आज़म... खींच लाई है तिरे दश्त की ... >> ख़ुद अपनी फ़िक्र उगाती है वहम के काँटे उलझ उलझ के मिरा हर सवाल ठहरा है Share on: