ख़ुद-रफ़्तगी है चश्म-ए-हक़ीक़त जो वा हुई By Sher << गिरते पेड़ों की ज़द में ह... सफ़र के साथ सफ़र के नए मस... >> ख़ुद-रफ़्तगी है चश्म-ए-हक़ीक़त जो वा हुई दरवाज़ा खुल गया तो मैं घर से निकल गया Share on: