ख़्वाहिश-ए-वस्ल का मज़मूँ जो किसी सत्र में था By Sher << उल्टी इक हाथ से नक़ाब उन ... तुम सलामत रहो हज़ार बरस >> ख़्वाहिश-ए-वस्ल का मज़मूँ जो किसी सत्र में था क्या कहूँ ख़त को मिरे पढ़ के वो क्या क्या उछला Share on: