तुम सलामत रहो हज़ार बरस By Sher << ख़्वाहिश-ए-वस्ल का मज़मूँ... उड़ाती है वो तेग़ चादर लह... >> तुम सलामत रहो हज़ार बरस हर बरस के हों दिन पचास हज़ार Share on: