खेतियाँ छालों की होती थीं लहू उगते थे By Sher << तुम उन को सज़ा क्यूँ नहीं... 'असग़र' ग़ज़ल में... >> खेतियाँ छालों की होती थीं लहू उगते थे कितना ज़रख़ेज़ था वो दर-बदरी का मौसम Share on: