खिड़कियाँ खोल लूँ हर शाम यूँही सोचों की By Sher << पर्दा जो उठा दिया गया है यहीं पर ख़त्म होनी चाहिए ... >> खिड़कियाँ खोल लूँ हर शाम यूँही सोचों की फिर उसी राह से यादों को गुज़रता देखूँ Share on: