खुलने से एक जिस्म के सौ ऐब ढक गए By Sher << ख़ुश-क़दों से कभी आलम न र... ख़ुदा-हाफ़िज़ है अब ऐ ज़ा... >> खुलने से एक जिस्म के सौ ऐब ढक गए उर्याँ-तनी भी जोश-ए-जुनूँ में लिबास है Share on: