खुलता है हर इक शख़्स के क़ामत के बराबर By Sher << उन सफ़ीनों की तबाही में ह... वा'दा किया है ग़ैर से... >> खुलता है हर इक शख़्स के क़ामत के बराबर ये दिल है कोई काठ का दरवाज़ा नहीं है Share on: