की है उस्ताद-ए-अज़ल ने ये रुबाई मौज़ूँ By Sher << कौन जाने कि नए साल में तू... ज़िंदगी की ज़रूरतों का यह... >> की है उस्ताद-ए-अज़ल ने ये रुबाई मौज़ूँ चार उंसुर से खुले मअनी-ए-पिन्हाँ हम को Share on: