किन दरीचों के चराग़ों से हमें निस्बत थी By Sher << बह चुका ख़ून-ए-दिल आँख तक... न बात दिल की सुनूँ मैं न ... >> किन दरीचों के चराग़ों से हमें निस्बत थी कि अभी जल नहीं पाए कि बुझाए गए हम Share on: