किन मंज़िलों लुटे हैं मोहब्बत के क़ाफ़िले By Sher << कोई बात ख़्वाब-ओ-ख़याल की... ख़ज़ीने जाँ के लुटाने वाल... >> किन मंज़िलों लुटे हैं मोहब्बत के क़ाफ़िले इंसाँ ज़मीं पे आज ग़रीब-उल-वतन सा है Share on: