किनारे भी मुमिद होते हैं तश्कील-ए-तलातुम में By Sher << कोई रौज़न ही ज़िंदाँ में ... हक़-ए-तन्क़ीद तुम्हें है ... >> किनारे भी मुमिद होते हैं तश्कील-ए-तलातुम में वो ख़्वाबीदा नज़र आते हैं ख़्वाबीदा नहीं होते Share on: