किनारे ही से तूफ़ाँ का तमाशा देखने वाले By Sher << मैं क्या करूँ कि ज़ब्त-ए-... इस से ज़ियादा दौर-ए-जुनूँ... >> किनारे ही से तूफ़ाँ का तमाशा देखने वाले किनारे से कभी अंदाज़ा-ए-तूफ़ाँ नहीं होता Share on: