कितना आसाँ था तिरे हिज्र में मरना जानाँ By Sher << शिकस्त-ए-तौबा की तम्हीद ह... जब मैं ने कहा दिल मिरा पा... >> कितना आसाँ था तिरे हिज्र में मरना जानाँ फिर भी इक उम्र लगी जान से जाते जाते Share on: